Special Report: संवेदनशील समाज ही रोक सकता है बढ़ती आत्महत्याएं

Special Report: संवेदनशील समाज ही रोक सकता है बढ़ती आत्महत्याएं

नरजिस हुसैन

10 सितंबर, 2003 से पूरी दुनिया में विश्व आत्महत्या निरोध दिवस मनाया जा रहा है। इस दिन की शुरूआत इंटरनेशनल सोसिएशन फॉर सुसाइड प्रीवेंशन और विश्व स्वास्थ्य संगठन ने की थी और 2014 में विश्व स्वास्थ्य समगठन ने पूरी दुनिया में आत्महत्या पर आधारित एक रिपोर्ट भी जारी की थी। हालांकि, इसका मकसद दुनिया के सभी देशों को आत्महत्या के बारे में चेताना और अपने-अपने देश में इसको लेकर जागरुकता फैलाना था लेकिन, अफसोस उसके बाद से हर साल दुनियाभर में आत्महत्या से मरने वालो की तादाद बढ़ती ही जा रही है।

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विश्व स्वास्थ्य संगठन मानता है कि दुनिया में हर 40 सेकेंड पर एक इंसान आत्महत्या करता है और इस तरह हर साल यह आंकड़ा 8 लाख लोगों तक पहंच जाता है। लेकिन, कुछ अन्य संस्थाएं इस आंकड़े को 10 लाख तक देखती है। और इस तरह आज न सिर्फ भारत में बल्कि दुनिया में 15-29 साल में होने वाली मौतों में बड़ी वजह आत्महत्या ही मानी जा रही है। इसके साथ ही यह मानी जा रही है। इसके साथ ही यह माना जाता रहा है कि हर आत्महत्या के पीछे 40 बार आत्महत्या की कोशिश की जाती है जो नाकाम रहती है। भारत में आत्महत्या के मामलों में पुरुषों की तादाद ज्यादा है लेकिन, आत्महत्या की कोशिशों की बात की जाए तो यहां खुदकुशी की कोशिश करने में औरतों की संख्या ज्यादा है।

हाल ही में बॉलीवुड स्टार की खुदकुशी का मामला जिस तरह पेचीदा होता जा रहा है और उसमें जिस तरह से आत्महत्या करने वाले के परिजनों को गाहे-बगाहे शामिल किया जा रहा है उससे हमारे देश के मीडिया और मानसिक स्वास्थ्य की जागरुकता की दिशा में उसके योगदान पर सवाल उठने शुरू हो गए हैं। हालांकि, यह कोई पहला ऐसा वाक्या नहीं है जब किसी बड़ी हस्ती ने खुदकुशी को हो लेकिन, खास इस घटना और उसके बाद होने वाले घटनाक्रमों ने भारत को दुनिया के सामने मानसिक तौर पर एक बीमार देश की तरह पेश किया है।

आत्महत्या और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी मुद्दों के बारे में जन जागरुकता फैलाने के बजाए मीडिया ने जिस तरह से सनसनी फैलाई है ससे लगता है कि हमारे समाज में लोगों की भावनाएं तेजी से खत्म होती जा रही है। नहीं तो मरने वाले के परिजनों को सांत्वना दी जाती थी उनके प्रति हमदर्दी समाज रखता था लेकिन, अब किसी को किसी की फ्रिक ही नहीं अब यह घटना जागरुकता नही महज एक सनसनीखेज उपन्यास लग रहा है जिसमें हर दिन एक नई कहानी एक नया मोड़ होता है। क्या हमारा समाज वाकई इतना निष्ठुर और नाउम्मीद हो गया है?

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने यह दावा किया था कि वक्त रहते अगर हालात न संभले तो 2020 आते-आते दुनिया में खुदकुशी से मरने वालों में हर 20 सेकेंड में एक आदमी आत्महत्या कर रहा होगा। और ये बात आत्महत्या पर ही सिर्फ लागू नही होती है बल्कि आत्महत्या की कोशिश में भी इजाफा देखा जाएगा। जिसमें औरतों की तादाद सबसे ज्यादा होगी। लेकिन बेहतर होगा अगर इन सब आकंड़ों को समझने के साथ ही हम अपने समाज को संवेदनशील बनाएं। किसी और की बात तो बाद में करें पहले हम अपने आपको और अपने आस-पास एक सकारात्मक माहौल बनाएं कोशिश करें कि लगातार एक-दूसरे से फोन पर ही सही बातचीत करते रहे। खासतौर पर जिस तरह से कोरोना के वक्त देश-दुनिया में तनाव से भरा माहौल बन गया है उसे संवाद के जरिए कम करने की कोशिश करे। खुद को खुश रखे और अपने आस-पास का माहौल भी खुशनुमा बनाएं एक-दूसरे के लिए फ्रिकमंद बने क्योंकि संवेदनहीन समाज में ही आत्महत्या का खतरा सबसे ज्यादा होता है।

 

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